बेशर्मी की सारी हदें पार कर , अब बैठा हूँ शरीफ़ बन कर । बेशर्मी की सारी हदें पार कर , अब बैठा हूँ शरीफ़ बन कर ।
ये कविता हर इंसान के लिए है, महज़ लड़कियों के लिए नहीं, हर उस इंसान के लिए, जो सांस ले रहा है, जी रहा ... ये कविता हर इंसान के लिए है, महज़ लड़कियों के लिए नहीं, हर उस इंसान के लिए, जो सां...
मेरे एहसास उनकी उम्मीदें इसीलिए तो मेरे अपने हैं इनसे ही तो मेरे सपने हैं इसीलिए तो मेरे एहसास उनकी उम्मीदें इसीलिए तो मेरे अपने हैं इनसे ही तो मेरे सपने हैं ...
दुश्मनों को, ना आने देंगे, इस धरती पे दोबारा, हम कर देंगे अर्पण....... दुश्मनों को, ना आने देंगे, इस धरती पे दोबारा, हम कर देंगे अर्पण.......
रूपांतरित कर देना का सब कुछ खुद सा सब कुछ स्वीकार करते हुये। रूपांतरित कर देना का सब कुछ खुद सा सब कुछ स्वीकार करते हुये।
कहने को दो-दो घर मेरे, फिर भी मैं पराई हूँ ! कहने को दो-दो घर मेरे, फिर भी मैं पराई हूँ !